भारत श्रीलंका संबंध दशकों से क्षेत्रीय स्थिरता, सांस्कृतिक समन्वय और आर्थिक साझेदारी का प्रतीक रहे हैं। इस लेख में हम गहराई से समझेंगे कि ये संबंध कैसे विकसित हुए, वर्तमान चुनौतियाँ क्या हैं और भविष्य में दोनों देशों के बीच सहयोग के प्रमुख अवसर कौन से हैं। यदि आप व्यापक जानकारी के साथ संदर्भ देखना चाहें तो यहां एक स्रोत है: keywords.
परिचय और व्यक्तिगत अनुभव
कई वर्षों पहले मैंने कोलंबो के Galle Face Green पर शाम के समय समुद्र किनारे टहलते हुए वहां के व्यापारिक और सामाजिक जीवन को करीब से देखा। उस अनुभव ने मुझे महसूस कराया कि भारत श्रीलंका संबंध केवल सरकारी कूटनीति नहीं है — यह रोजमर्रा के लोगों की जुड़न, व्यापारिक रिश्तों और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का भी परिणाम है। इस तरह के अनुभव बताते हैं कि नीति और भावनात्मक जुड़ाव दोनों ही इस रिश्ते को आकार देते हैं।
इतिहास का संक्षिप्त अवलोकन
भारत और श्रीलंका के बीच ऐतिहासिक सम्बन्ध प्राचीन काल से हैं। बौद्ध धर्म के प्रसार से लेकर समुद्री व्यापार तक, दोनों क्षेत्रों के बीच निरंतर संपर्क रहा है। समय-समय पर दक्षिण भारतीय राजवंशों के आक्रमण और वाणिज्यिक आदान-प्रदान ने इस रिश्ते को ऊपर-नीचे किया। औपनिवेशिक युग में ब्रिटिश शासन के दौरान सीमाओं और प्रशासनिक संरचनाओं ने आधुनिक रिश्तों को नया रूप दिया। 1948 में श्रीलंका की स्वतंत्रता के बाद से ही दोनों देशों ने कई द्विपक्षीय समझौतों और सहयोगों के माध्यम से संबंधों को विकसित किया।
राजनीतिक और कूटनीतिक आयाम
राजनीतिक रूप से भारत ने हिन्द-महासागर क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने के प्रयत्न किए हैं। 1987 का Indo–Sri Lanka Accord और उसके बाद आने वाले वर्षों में भारत की भूमिका, खासकर IPKF की भूमिका, द्विपक्षीय रिश्तों की जटिलताओं का उदाहरण रही। इसके अलावा, 21वीं सदी में चीन के बढ़ते प्रभाव के परिप्रेक्ष्य में भारत–श्रीलंका संबंधों का सामरिक महत्व और भी बढ़ गया है।
क्षेत्रीय सुरक्षा और समुद्री हित
भारतीय महासागर में समुद्री सुरक्षा, मछली पालन के संसाधन और समुद्री सीमाओं की निगरानी जैसे पहलुओं पर दोनों देशों के हित स्पष्ट रूप से मेल खाते हैं। द्विपक्षीय सैन्य अभ्यास, समुद्री निगरानी सहयोग और मानवतावादी सहायता मिशन समय-समय पर दोनों ताकतों के बीच भरोसा बनाते हैं।
आर्थिक और व्यापारिक सम्बन्ध
वाणिज्यिक दृष्टि से भारत श्रीलंका के प्रमुख व्यापारिक साझेदारों में से एक है। चाय, रबर और कृषि-उत्पाद श्रीलंका से भारत को जाते हैं, जबकि भारत से वस्त्र, पेट्रोलियम उत्पाद और औद्योगिक मशीनरी वहां पहुंचती हैं। दोनों देशों के बीच निवेश, विशेषकर बुनियादी ढांचा और ऊर्जा क्षेत्रों में, रुचि का केंद्र रहे हैं।
विगत वर्षों में भारत ने श्रीलंका को लाइन-ऑफ़-क्रेडिट, सीमा-आधारित सहायता और तकनीकी सहयोग के माध्यम से आर्थिक सहायता प्रदान की है। साथ ही, बहुत से भारतीय छोटे और मध्यम उद्यम और सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियाँ श्रीलंकाई बाजार में सक्रिय हैं।
CEPA और मुक्त व्यापार की संभावनाएँ
Comprehensive Economic Partnership Agreement (CEPA) पर दोनों देशों की बातचीत लंबे समय से चल रही है। एक संतुलित और पारस्परिक लाभकारी CEPA दोनों अर्थव्यवस्थाओं को आवश्यकता के अनुसार पूरक कर सकती है — विशेषकर सेवा क्षेत्र, कृषि और निवेश प्रवाह के मामले में।
सांस्कृतिक और मानवीय संबंध
भारत और श्रीलंका के बीच सांस्कृतिक सम्बन्ध अत्यन्त गहरे हैं। बौद्ध धर्म के सांस्कृतिक केंद्रों की वजह से दोनों देशों के तीर्थयात्री लगातार एक-दूसरे के राष्ट्रों में आते-जाते रहे हैं। तमिलनाडु और श्रीलंका के पूर्वोत्तर क्षेत्र की भाषाई और सांस्कृतिक समानताएँ परिवारिक और सामाजिक संबंधों को मजबूत करती हैं।
लोगों-से-लोगों के संपर्क, छात्र विनिमय, और प्रवासी श्रमिकों के माध्यम से बनी रहने वाली यह पारंपरिक निकटता नीतिगत रिश्तों के अतिरिक्त एक स्थायी बुनियादी आधार है।
मुख्य चुनौतियाँ
हालाँकि सहयोग के कई आयाम मौजूद हैं, पर चुनौतियाँ भी हैं:
- मछुआरों के विवाद — दोनों देशों के बीच समुद्री सीमाओं के पास मछली पकड़ने के मामले पर तनाव समय-समय पर बढ़ता है।
- तमिल मुद्दा और डायस्पोरा — श्रीलंका में तमिलों की स्थिति और भारत के भीतर तमिलनाडु की राजनीतिक संवेदनशीलताएँ द्विपक्षीय रिश्तों को प्रभावित करती हैं।
- आर्थिक अस्थिरता — श्रीलंका में हाल की आर्थिक चुनौतियों ने विदेशी सहायता व निवेश की आवश्यकता बढ़ा दी, जिससे नीतिगत समायोजन और अंतरराष्ट्रीय कर्ज-संबंधी निर्णय महत्वपूर्ण बनते हैं।
- क्षेत्रीय शक्तियों का प्रभाव — चीन समेत अन्य देशों की भागीदारी से रणनीतिक समीकरण जटिल होते हैं, जिससे भारत को दीर्घकालिक रणनीति अपनानी पड़ती है।
निर्णायक कदम: भरोसा और पारदर्शिता
भरोसा बनाने के लिए पारदर्शिता, त्वरित मानवीय और आर्थिक सहायता, तथा विवादों के शांतिपूर्ण समधान पर बल आवश्यक है। उदाहरण के लिए, मछली पकड़ने के विवाद को टेक-आधारित निगरानी, सामुदायिक स्तर पर वार्ता और संयुक्त प्रबंध के माध्यम से हल किया जा सकता है। इसी तरह, निवेश और परियोजनाओं में स्थानीय समाज की भागीदारी सुनिश्चित करने से दीर्घकालिक सफलता मिलने की संभावना बढ़ती है।
प्रयोगात्मक उदाहरण और नीतिगत सुझाव
1) समुद्री निगरानी और संयुक्त तटीय अभियान — एक साझा रडार नेटवर्क और प्रशिक्षण कार्यक्रम से खोज और बचाव क्षमता में वृद्धि होगी।
2) शिक्षा और कौशल विकास — तकनीकी सहयोग केंद्र और छात्र-विनिमय से दोनों देशों के युवाओं को रोजगारोन्मुख कौशल मिलेंगे।
3) छोटे व्यवसायों के लिए क्रॉस-बॉर्डर क्लस्टर — विशेष आर्थिक क्षेत्रों में छोटे उद्योगों के सहयोग से स्थानीय रोजगार और निर्यात बढ़ाया जा सकता है।
भविष्य के अवसर
भारत श्रीलंका संबंध के आगे बढ़ने के कई रास्ते हैं: हरित ऊर्जा परियोजनाओं में साझेदारी (जैसे सौर और पवन), डिजिटल कनेक्टिविटी, स्वास्थ्य सेवा सहयोग और पर्यटन के स्थायी मॉडल। समुद्री शिपिंग और लॉजिस्टिक्स में सहयोग को बढ़ाकर भारतीय महासागर क्षेत्र में संयुक्त समृद्धि संभव है।
निष्कर्ष
भारत श्रीलंका संबंध केवल राजनीति या अर्थव्यवस्था तक सीमित नहीं हैं; ये रिश्ते इतिहास, संस्कृति और सामुदायिक अन्तरक्रिया का संगम हैं। चुनौतियाँ जरी हुई हैं, पर पारदर्शिता, सम्मान और व्यावहारिक सहयोग से इनका समाधान संभव है। भविष्य में यदि दोनों साथी पारस्परिक हितों को प्राथमिकता दें और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए मिलकर काम करें तो यह रिश्ता ऊर्जा, सुरक्षा और समृद्धि का मजबूत आधार बन सकता है। अधिक संदर्भ के लिए एक स्रोत यहाँ उपलब्ध है: keywords.
लेखक का अनुभव: मैंने क्षेत्रीय नीति पर वर्षों तक शोध किया है और दक्षिण एशियाई द्विपक्षीय मामलों पर अनेक फ्रंटलाइन यात्राएँ की हैं। उपर्युक्त विश्लेषण ऐतिहासिक दस्तावेजों, सार्वजनिक नीतियों और स्थानीय अनुभवों के समिश्रण पर आधारित है।